वो जो हमको बेहिसाब दिखते हैं,
हम भी उन्हीं पर किताब लिखते हैं।
यूँ तो कई,कई बार हमसे मिलते हैं,
और हम हैं बस उन्हीं का हिसाब लिखते हैं।
अक्सर इश्क़ मुक्कमल हो जाता है उनका,
जो आँखों की भाषा को जुबां का जवाब लिखते हैं।
जिनकी याद में आँखें अब्र बनकर बरसती हैं,
हमारी दिल्लगी तो देखो हम उन्हीं आँखों को शराब लिखते हैं।
इश्क़ करने को तुमसे दौड़ पड़े थे तुम्हारी ओर सो,
जिसको दरिया समझा था उसी को सराब लिखते हैं।
चाँद नहीं देखते हैं गीत लिखते वक्त अब हम,
जब से उनके चेहरे को ही माहताब लिखते हैं।
किसी रोज़ हमें कैद तो करो अपनी आँखों में,
हम भी शायर हैं, बड़ें हसीं ख़्वाब लिखते हैं।
मीर, ग़ालिब,जॉन नहीं हैं हम, हमको पढ़ो
तो सही हम भी बेहिसाब लिखते हैं...❤
©शुभम कहता है...