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बुधवार, 29 अगस्त 2018

द्वितीय काव्यवन्दना

                           मैं कवि हूँ....
शिशुपाल मर्दन में कृष्णान्गुल कट जाने पर ,
                     व्याकुल द्रुपदसुता के पीर से....
क्या कभी मेरे घर भी आएँगे? सोचते-सोचते
                     गिर रहे विदुरानी की दृगों के नीर से....
हाँ, उसी विदुरानी की साग, पांचाली के आँचल के चीर से....
प्रेम-'रश्मि' में जो बंध गए,
                       उस भगवान को आराध्य लिखता हूँ।
                             मैं कवि हूँ,
    हरि भक्ति के दृष्टान्त से अपना काव्य लिखता हूँ....
    
                  ©शुभम कहता है...

सोमवार, 27 अगस्त 2018

मैं कवि हूँ अपना काव्य लिखता हूँ

अलसायी आँखो को खोलकर ,
                             कर -बंधनों को तोड़कर
रवि की प्रथम 'रश्मि' से नष्ट हुए
                               उन तुहिन कणों के कोमल गात पर
अपना सौभाग्य लिखता हूँ।
                              
मैं कवि हूँ
                 अपना काव्य लिखता हूँ।
 
                    ©शुभम कहता है...

रविवार, 26 अगस्त 2018

मैं लिखना चाहता हूँ।

सर्वप्रथम मैं बताना चाहता हूँ कि कोई पारम्परिक लेखक नही हूँ।
लेकिन हाँ मेरे अंदर कुछ लिखने की चाह हमेशा से मेरेअंतर्मन में घर चुकी है।
जिसके फलस्वरूप अब मैं कुछ न कुछ लिखने को स्वप्रेरित
हो चुका हूँ।
शायद मैं कुछ लेख,कुछ कविताएँ, कुछ मुक्त पंक्तियाँ लिखकर जल्द ही लौटूँ।

राधे-राधे!

रश्मि-राग

जग की प्रेम निशानी हो तुम राधिके कान्हा की ही दीवानी हो तुम राधिके      जिनमें घुल के कन्हैया भी उज्जवल हुए ऐसी यमुना का पानी हो तुम...