मैं कवि हूँ....
शिशुपाल मर्दन में कृष्णान्गुल कट जाने पर ,
व्याकुल द्रुपदसुता के पीर से....
क्या कभी मेरे घर भी आएँगे? सोचते-सोचते
गिर रहे विदुरानी की दृगों के नीर से....
हाँ, उसी विदुरानी की साग, पांचाली के आँचल के चीर से....
प्रेम-'रश्मि' में जो बंध गए,
उस भगवान को आराध्य लिखता हूँ।
मैं कवि हूँ,
हरि भक्ति के दृष्टान्त से अपना काव्य लिखता हूँ....
हरि भक्ति के दृष्टान्त से अपना काव्य लिखता हूँ....
©शुभम कहता है...