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रविवार, 26 अगस्त 2018

मैं लिखना चाहता हूँ।

सर्वप्रथम मैं बताना चाहता हूँ कि कोई पारम्परिक लेखक नही हूँ।
लेकिन हाँ मेरे अंदर कुछ लिखने की चाह हमेशा से मेरेअंतर्मन में घर चुकी है।
जिसके फलस्वरूप अब मैं कुछ न कुछ लिखने को स्वप्रेरित
हो चुका हूँ।
शायद मैं कुछ लेख,कुछ कविताएँ, कुछ मुक्त पंक्तियाँ लिखकर जल्द ही लौटूँ।

2 टिप्‍पणियां:

राधे-राधे!

रश्मि-राग

जग की प्रेम निशानी हो तुम राधिके कान्हा की ही दीवानी हो तुम राधिके      जिनमें घुल के कन्हैया भी उज्जवल हुए ऐसी यमुना का पानी हो तुम...