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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

रश्मि-राग

       मोहब्बत में मैं उसकी, अब नुमाइश खूब पाता हूँ,
       नवाज़िश से मैं उसकी, अब थोड़ा ऊब जाता हूँ।
       हमारा प्यार जीता है , उन्हीं दरिया सी आँखों में
       मैं जिनमें डूब जाता था , उन्हीं में डूब जाता हूँ...❤

       ©शुभम कहता है...

शनिवार, 3 नवंबर 2018

रश्मि-राग

    जो कहती हो कहानी अपनी, अब सब गीत करना है।
    सभी प्राणों में बस जाए, कुछ ऐसी प्रीत करना है।
    मैं लिख दूँगा कहानी सब, ज़रा इककार ये कर दो
    मुझे जो गीत करना है, तुम्हें संगीत करना है...❤

    ©शुभम कहता है...

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

रश्मि-राग

        जो कुछ भी लिखा मैंने, ये केवल इक बहाना है,
        वो जिस दरिया में उतरे थे ,उसी के पार जाना है।
        मैं जिनमें डूब जाता हूँ ,उसी नदिया सी नर्गिस से
        तुम्हारा प्यार पाना था, तुम्हारा प्यार पाना है...❤

       ©शुभम कहता है...

रश्मि-राग

       तुम्हारी याद ना आए, यही फरियाद करता हूँ,
       मेरे ख्वाबों की दुनिया से, तुम्हें आज़ाद करता हूँ।
       ख़लिस इन्कार से ये ,है मगर फुर्सत जो पाता हूँ,
       (ख़फा हूँ तेरे जाने से, मगर फुर्सत जो पाता हूँ...)
       तुम्हें ही याद करता,था तुम्हें ही याद करता हूँ...❤

       ©शुभम कहता है...

रश्मि-राग

मेरे मुक्तक "रश्मि-राग" से संकलित...❤

   ©शुभम कहता है...

कविता - दादी माँ की स्मृति में

ठीक आज से दो वर्ष पूर्व
ज्यों रवि था होने को अस्त
खड़ा काल था कर्म प्रशस्त
अम्बर में टूटती हुई रश्मियाँ
कुछ संकेत कर रहीं थीं
आज जग का समस्तदुःख
हमारे निकेत में भर रहीं थीं
हे! ममतामयी हे! गृहजननी
तुम्हारी साँस छूट रही थी
जो थे खड़े सब सम्मुख
तुम्हारे उनके नयन-सिन्धु से
अश्रु की लहरें फूट रही थीं
फिर गंगाजल का पान किया
जाने का सबको भान दिया
अवनि को करती हुई नमन
किया भानु संग सुरधाम गमन
हे!पितामही ये शुभम कहता है
रवि संग जो जाता होगा
अवश्य बैकुंठ ही पाता होगा...

©शुभम कहता है...

तुम जो आती कमल से नयन दो लिए....

तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
चल रहे ये कदम भी थम से गए,
जैसे ऐसा लगा हम दम से गए।
तेरे(कारे) नयनों के जंगल मे ऐसे फँसे,
जैसे भू से कोई स्वर्ग में जा बसे।
चंद्र ने अब तुम्हारे मुख धुल दिए,
मुख है या स्वयं चंद्र ही हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ऐसे की रति हो प्रिये।
तुम आती हो ऐसी मगन सी हुई,
जैसे धरती की बातें गगन से हुई।
फिर जो अम्बर उड़ा तो उड़ा ही रहा,
मैं खड़ा था खड़ा का खड़ा ही रहा।
तुम जाती रही दृग से भी परे,
मैं भी पीछे मुड़ा यों संग हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
©शुभम कहता है...

राधे-राधे!

रश्मि-राग

जग की प्रेम निशानी हो तुम राधिके कान्हा की ही दीवानी हो तुम राधिके      जिनमें घुल के कन्हैया भी उज्जवल हुए ऐसी यमुना का पानी हो तुम...