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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

वो जो हमको बेहिसाब दिखते हैं...

वो जो हमको बेहिसाब दिखते हैं,
हम भी उन्हीं पर किताब लिखते हैं।

यूँ तो कई,कई बार हमसे मिलते हैं,
और हम हैं बस उन्हीं का हिसाब लिखते हैं।

अक्सर इश्क़ मुक्कमल हो जाता है उनका,
जो आँखों की भाषा को जुबां का जवाब लिखते हैं।

जिनकी याद में आँखें अब्र बनकर बरसती हैं,
हमारी दिल्लगी तो देखो हम उन्हीं आँखों को शराब लिखते हैं।

इश्क़ करने को तुमसे दौड़ पड़े थे तुम्हारी ओर सो,
जिसको दरिया समझा था उसी को सराब लिखते हैं।

चाँद नहीं देखते हैं गीत लिखते वक्त अब हम,
जब से उनके चेहरे को ही माहताब लिखते हैं।

किसी रोज़ हमें कैद तो करो अपनी आँखों में,
हम भी शायर हैं, बड़ें हसीं ख़्वाब लिखते हैं।

मीर, ग़ालिब,जॉन नहीं हैं हम, हमको पढ़ो
तो सही हम भी बेहिसाब लिखते हैं...❤

©शुभम कहता है...


मंगलवार, 6 नवंबर 2018

रश्मि-राग

       मोहब्बत में मैं उसकी, अब नुमाइश खूब पाता हूँ,
       नवाज़िश से मैं उसकी, अब थोड़ा ऊब जाता हूँ।
       हमारा प्यार जीता है , उन्हीं दरिया सी आँखों में
       मैं जिनमें डूब जाता था , उन्हीं में डूब जाता हूँ...❤

       ©शुभम कहता है...

शनिवार, 3 नवंबर 2018

रश्मि-राग

    जो कहती हो कहानी अपनी, अब सब गीत करना है।
    सभी प्राणों में बस जाए, कुछ ऐसी प्रीत करना है।
    मैं लिख दूँगा कहानी सब, ज़रा इककार ये कर दो
    मुझे जो गीत करना है, तुम्हें संगीत करना है...❤

    ©शुभम कहता है...

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

रश्मि-राग

        जो कुछ भी लिखा मैंने, ये केवल इक बहाना है,
        वो जिस दरिया में उतरे थे ,उसी के पार जाना है।
        मैं जिनमें डूब जाता हूँ ,उसी नदिया सी नर्गिस से
        तुम्हारा प्यार पाना था, तुम्हारा प्यार पाना है...❤

       ©शुभम कहता है...

रश्मि-राग

       तुम्हारी याद ना आए, यही फरियाद करता हूँ,
       मेरे ख्वाबों की दुनिया से, तुम्हें आज़ाद करता हूँ।
       ख़लिस इन्कार से ये ,है मगर फुर्सत जो पाता हूँ,
       (ख़फा हूँ तेरे जाने से, मगर फुर्सत जो पाता हूँ...)
       तुम्हें ही याद करता,था तुम्हें ही याद करता हूँ...❤

       ©शुभम कहता है...

रश्मि-राग

मेरे मुक्तक "रश्मि-राग" से संकलित...❤

   ©शुभम कहता है...

कविता - दादी माँ की स्मृति में

ठीक आज से दो वर्ष पूर्व
ज्यों रवि था होने को अस्त
खड़ा काल था कर्म प्रशस्त
अम्बर में टूटती हुई रश्मियाँ
कुछ संकेत कर रहीं थीं
आज जग का समस्तदुःख
हमारे निकेत में भर रहीं थीं
हे! ममतामयी हे! गृहजननी
तुम्हारी साँस छूट रही थी
जो थे खड़े सब सम्मुख
तुम्हारे उनके नयन-सिन्धु से
अश्रु की लहरें फूट रही थीं
फिर गंगाजल का पान किया
जाने का सबको भान दिया
अवनि को करती हुई नमन
किया भानु संग सुरधाम गमन
हे!पितामही ये शुभम कहता है
रवि संग जो जाता होगा
अवश्य बैकुंठ ही पाता होगा...

©शुभम कहता है...

तुम जो आती कमल से नयन दो लिए....

तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
चल रहे ये कदम भी थम से गए,
जैसे ऐसा लगा हम दम से गए।
तेरे(कारे) नयनों के जंगल मे ऐसे फँसे,
जैसे भू से कोई स्वर्ग में जा बसे।
चंद्र ने अब तुम्हारे मुख धुल दिए,
मुख है या स्वयं चंद्र ही हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ऐसे की रति हो प्रिये।
तुम आती हो ऐसी मगन सी हुई,
जैसे धरती की बातें गगन से हुई।
फिर जो अम्बर उड़ा तो उड़ा ही रहा,
मैं खड़ा था खड़ा का खड़ा ही रहा।
तुम जाती रही दृग से भी परे,
मैं भी पीछे मुड़ा यों संग हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
©शुभम कहता है...

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

हिंदी दिवस

हिंदी दिवस की सभी को अनंत शुभकामनाएँ। आज इस हिंदी दिवस के पावन पर्व पर, शुभम कुछ कहना चाहता है---
मैं कई दिन से इसी उधेड़बुन में था कि कोई कविता लिखी जाए हिंदी दिवस पर तो मैंने एक कविता लिखी जो कि अभी पूर्ण नही है पर आज मुझे उसे  संपादित करना ही पड़ेगा।

जब जागा प्रथम अवनि पर,
जब कर्णपटल पर स्पन्दन आएँ।
सोचा कुछ अभिव्यक्ति करूँ,
पर मुख से केवल क्रंदन आएँ।

मेरी अकुलाहट देखकर ,
मन हुआ तेरा विह्वल।
 तब उसका संहार कर,
तूने श्रवण-कथन का ज्ञान दिया।

देख तेरा प्रेम यह,
दृगों से झरे स्नेह जल,
तब से तुम्हें हे माता!
मैनें निज माता सा मान दिया।

©शुभम कहता है...


कविता के साथ-साथ आपसे अनुरोध है कि जिस हिंदी माता ने हमें ज़बान दिया हुआ है, उसकी महत्ता हम बनाएं रखें, स्वयं हिंदी के अच्छे विद्यार्थी बनें आपको मालूम होगा कि हम सभी जनगणना में हिन्दीभाषी लोगों में गिने जाते हैं और हम ही हिंदी के बारें में जानने में सकुचाते हैं इसे पढ़कर क्या होगा। हिंदी भाषा हम सभी की जननी है , अगर हम उनकी संतान होकर ऐसा करेंगे तो किसी भी भाषा के लिए इससे अशोभनीय कुछ नहीं हो सकता।

                       ÷विचार अवश्य कीजियेगा÷

बुधवार, 29 अगस्त 2018

द्वितीय काव्यवन्दना

                           मैं कवि हूँ....
शिशुपाल मर्दन में कृष्णान्गुल कट जाने पर ,
                     व्याकुल द्रुपदसुता के पीर से....
क्या कभी मेरे घर भी आएँगे? सोचते-सोचते
                     गिर रहे विदुरानी की दृगों के नीर से....
हाँ, उसी विदुरानी की साग, पांचाली के आँचल के चीर से....
प्रेम-'रश्मि' में जो बंध गए,
                       उस भगवान को आराध्य लिखता हूँ।
                             मैं कवि हूँ,
    हरि भक्ति के दृष्टान्त से अपना काव्य लिखता हूँ....
    
                  ©शुभम कहता है...

सोमवार, 27 अगस्त 2018

मैं कवि हूँ अपना काव्य लिखता हूँ

अलसायी आँखो को खोलकर ,
                             कर -बंधनों को तोड़कर
रवि की प्रथम 'रश्मि' से नष्ट हुए
                               उन तुहिन कणों के कोमल गात पर
अपना सौभाग्य लिखता हूँ।
                              
मैं कवि हूँ
                 अपना काव्य लिखता हूँ।
 
                    ©शुभम कहता है...

रविवार, 26 अगस्त 2018

मैं लिखना चाहता हूँ।

सर्वप्रथम मैं बताना चाहता हूँ कि कोई पारम्परिक लेखक नही हूँ।
लेकिन हाँ मेरे अंदर कुछ लिखने की चाह हमेशा से मेरेअंतर्मन में घर चुकी है।
जिसके फलस्वरूप अब मैं कुछ न कुछ लिखने को स्वप्रेरित
हो चुका हूँ।
शायद मैं कुछ लेख,कुछ कविताएँ, कुछ मुक्त पंक्तियाँ लिखकर जल्द ही लौटूँ।

राधे-राधे!

रश्मि-राग

जग की प्रेम निशानी हो तुम राधिके कान्हा की ही दीवानी हो तुम राधिके      जिनमें घुल के कन्हैया भी उज्जवल हुए ऐसी यमुना का पानी हो तुम...