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बुधवार, 29 अगस्त 2018

द्वितीय काव्यवन्दना

                           मैं कवि हूँ....
शिशुपाल मर्दन में कृष्णान्गुल कट जाने पर ,
                     व्याकुल द्रुपदसुता के पीर से....
क्या कभी मेरे घर भी आएँगे? सोचते-सोचते
                     गिर रहे विदुरानी की दृगों के नीर से....
हाँ, उसी विदुरानी की साग, पांचाली के आँचल के चीर से....
प्रेम-'रश्मि' में जो बंध गए,
                       उस भगवान को आराध्य लिखता हूँ।
                             मैं कवि हूँ,
    हरि भक्ति के दृष्टान्त से अपना काव्य लिखता हूँ....
    
                  ©शुभम कहता है...

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