तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
चल रहे ये कदम भी थम से गए,
जैसे ऐसा लगा हम दम से गए।
तेरे(कारे) नयनों के जंगल मे ऐसे फँसे,
जैसे भू से कोई स्वर्ग में जा बसे।
चंद्र ने अब तुम्हारे मुख धुल दिए,
मुख है या स्वयं चंद्र ही हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ऐसे की रति हो प्रिये।
तुम आती हो ऐसी मगन सी हुई,
जैसे धरती की बातें गगन से हुई।
फिर जो अम्बर उड़ा तो उड़ा ही रहा,
मैं खड़ा था खड़ा का खड़ा ही रहा।
तुम जाती रही दृग से भी परे,
मैं भी पीछे मुड़ा यों संग हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
चल रहे ये कदम भी थम से गए,
जैसे ऐसा लगा हम दम से गए।
तेरे(कारे) नयनों के जंगल मे ऐसे फँसे,
जैसे भू से कोई स्वर्ग में जा बसे।
चंद्र ने अब तुम्हारे मुख धुल दिए,
मुख है या स्वयं चंद्र ही हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ऐसे की रति हो प्रिये।
तुम आती हो ऐसी मगन सी हुई,
जैसे धरती की बातें गगन से हुई।
फिर जो अम्बर उड़ा तो उड़ा ही रहा,
मैं खड़ा था खड़ा का खड़ा ही रहा।
तुम जाती रही दृग से भी परे,
मैं भी पीछे मुड़ा यों संग हो लिए।
तुम जो आती कमल से नयन दो लिए,
लग रहे हैं ये ऐसे की रति हो प्रिये।
©शुभम कहता है...
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