जाओगे तो देखोगे
बहुत दूर तक हैं
खेत ही खेत
घर के पीछे
जहाँ कुछ हफ़्ते
पहले तक थी
गेहूँ की सुनहली फसल
जो कि अब कट
चुकी है
खेत हों चुके हैं
बिल्कुल सफाचट
उन खेतों में
सुबह-शाम
दीख जाते हैं
इक्के-दुक्के चरवाहे
अपने चौपायों के साथ
जबकि दोपहर में
दीखते हैं सूरज को
ठेंगा दिखाते
चार-चार
पाँच-पाँच की गोल
बनाए मुसहरों के बच्चे
बीनते हुए गिरीं हुईं
गेहूँ की बालियाँ
क्योंकि उन्होंने ठाना है कि
वे नहीं खायेंगे
चुन्नी और चोकर की रोटियाँ
अगले कुछ दिनों तक
©शुभम यादव