जब
बसंत के स्वागत में
हवा सरपट
दौड़ लगाती है
हरी-खड़ी
गेहूँ की फसलों
के माथे पर
और उसका साथ
और उसका साथ
देते हुए
हँसते
गाते
खिलखिलाते
लहलहा
उठती है
खेत में खड़ी
जवान फसल
तब
चमक उठतींं हैं
उस किसान की आँखें
घिरे काले
बादलों-सी
और
उनसे
उनसे
चूँ जाता है
कुछ पानी
आसमानी!
अरे मेरी जान क्या लिखे हो।♥️♥️♥️ इंकलाबी इस्तकबाल क्रांतिकारी कवि ✊✊✊
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